श्री राम चंद्र स्तुति: महत्त्व, मंत्र, और शब्दशः अर्थ
1. श्री राम चंद्र स्तुति का महत्त्व और अर्थ जानना क्यों आवश्यक है?
श्री राम चंद्र स्तुति एक अत्यंत पवित्र और महिमामयी स्तुति है, जो भगवान श्री राम की दिव्यता और उनकी मर्यादा पुरुषोत्तमता की प्रशंसा करती है। इस स्तुति का प्रतिदिन पाठ करने से मन, शरीर और आत्मा को शांति मिलती है। लेकिन केवल पाठ करने से ही लाभ नहीं होता, जब तक हम इसके गहरे अर्थ को समझते नहीं हैं। प्रत्येक मंत्र या स्तुति का अर्थ समझने से न केवल हम भगवान की महिमा को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं, बल्कि अपने जीवन में उन गुणों को भी अपनाने की प्रेरणा पाते हैं। यह हमें भक्ति के मार्ग पर स्थिरता और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने में सहायक होता है।
2. श्री राम चंद्र स्तुति
श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणम्।
नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर कंज, पद कंजारुणम्॥
कंदर्प अगणित अमित छवि नवनील-नीरद-सुन्दरम्।
पटपीत मानहु तडित रुचि शुचि नोमि जनक सुतावरम्॥
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव-दैत्य-वन्स-निकन्दनम्।
रघुनन्द आनन्द कंद कोशल-चन्द्र दशरथ-नन्दनम्॥
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणम्।
आजानु-भुज शर-चाप-धर संग्राम-जित-खरदूषणम्॥
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रञ्जनम्।
मम हृदय-कंज निवास कुरु कामादि-खल-दल-गञ्जनम्॥
3. श्री राम चंद्र स्तुति का शब्दशः अर्थ
श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणम्।
मेरे मन, श्री रामचंद्र का भजन कर, जो संसार सागर के भयंकर भय को हरने वाले हैं।
नवकंज-लोचन, कंज-मुख, कर कंज, पद कंजारुणम्॥
जिनकी आँखें कमल के समान नवीन हैं, मुख कमल के समान है, हाथ और चरण भी कमल के समान सुंदर और लालिमा से युक्त हैं।
कंदर्प अगणित अमित छवि नवनील-नीरद-सुन्दरम्।
जिनकी शोभा अनगिनत कामदेवों के समान है और जो नवीन नील मेघ के समान सुंदर हैं।
पटपीत मानहु तडित रुचि शुचि नोमि जनक सुतावरम्॥
जिन्होंने पीले वस्त्र धारण किए हैं, जो विद्युत के समान चमकते हैं और जो पवित्र हैं, मैं जनक जी की पुत्री सीता के पति श्री राम को नमन करता हूँ।
भजु दीनबन्धु दिनेश दानव-दैत्य-वन्स-निकन्दनम्।
श्री रामचंद्र दीनों के बंधु, संसार के स्वामी और दानव-दैत्य वंश के संहारक हैं, उनका भजन करो।
रघुनन्द आनन्द कंद कोशल-चन्द्र दशरथ-नन्दनम्॥
श्री राम रघुकुल के आनंद हैं, वे कौशल राज्य के चंद्रमा और दशरथ के पुत्र हैं।
सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणम्।
जिनके सिर पर मुकुट है, कानों में कुंडल हैं, सुंदर तिलक है और उदार शरीर विभिन्न आभूषणों से विभूषित है।
आजानु-भुज शर-चाप-धर संग्राम-जित-खरदूषणम्॥
जिनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी हैं, जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं और जिन्होंने युद्ध में खर-दूषण को पराजित किया है।
इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रञ्जनम्।
तुलसीदास कहते हैं कि श्री रामचंद्र, भगवान शंकर, शेषनाग और ऋषि-मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले हैं।
मम हृदय-कंज निवास कुरु कामादि-खल-दल-गञ्जनम्॥
हे प्रभु! मेरे हृदय रूपी कमल में निवास करो और कामादि दोषों को नष्ट करो।
निष्कर्ष:
श्री राम चंद्र स्तुति का पाठ जीवन में आध्यात्मिक शांति, सुरक्षा और भगवान राम के आदर्शों को अपनाने की प्रेरणा देता है। इसके अर्थ को समझकर पाठ करने से हम उनके गुणों को और गहराई से आत्मसात कर पाते हैं।