हनुमान चालीसा का अर्थ जानना क्यों महत्वपूर्ण है?
हनुमान चालीसा एक अत्यंत शक्तिशाली और प्रभावशाली भक्ति स्तोत्र है, जिसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा था। इसका पाठ करने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि जीवन के कठिनाइयों और बाधाओं से मुक्ति भी मिलती है। लेकिन हनुमान चालीसा का केवल पाठ करना ही पर्याप्त नहीं है, इसका सही अर्थ समझना भी उतना ही जरूरी है। इसके कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हैं:
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भक्ति में गहराई: हनुमान चालीसा में भगवान हनुमान के अद्वितीय गुणों और उनके पराक्रम का वर्णन किया गया है। जब हम इसका अर्थ समझते हैं, तो हमारी भक्ति और भी गहरी हो जाती है। हमें भगवान हनुमान के गुणों और उनकी लीलाओं का सही ज्ञान होता है, जिससे हमारी भक्ति में अधिक श्रद्धा और समर्पण आता है।
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सकारात्मक ऊर्जा और प्रेरणा: हनुमान चालीसा का अर्थ समझने से हमें यह पता चलता है कि भगवान हनुमान किस प्रकार अपने भक्तों की सहायता करते हैं और उन्हें हर संकट से बचाते हैं। इससे हमें मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति मिलती है, और हम जीवन की कठिनाइयों का सामना करने के लिए प्रेरित होते हैं।
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मन की शांति: जब हम हनुमान चालीसा का पाठ सही अर्थ के साथ करते हैं, तो हमें मानसिक शांति मिलती है। प्रत्येक श्लोक में छिपे हुए आध्यात्मिक संदेश को समझने से हमारा मन शांत और संतुलित रहता है, जिससे हम तनावमुक्त रहते हैं।
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आध्यात्मिक विकास: हनुमान चालीसा का अर्थ जानने से हम भगवान हनुमान के आदर्शों को अपने जीवन में उतार सकते हैं। उनकी निष्ठा, विनम्रता, पराक्रम, और भक्ति से हम प्रेरणा लेते हैं और अपने आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध करते हैं।
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आत्मविश्वास और साहस: हनुमान चालीसा के अर्थ को समझने से हमें हनुमान जी की शक्ति और साहस का अहसास होता है। यह हमें कठिन समय में धैर्य और आत्मविश्वास बनाए रखने में मदद करता
हनुमान चालीसा (हनुमान चालीसा)
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥
॥ दोहा ॥
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेउ साजै॥
संकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन॥
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
तुम्हरो मन्त्र विभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिनके काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अन्तकाल रघुपति पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जय जय जय हनुमान गोसाई।
कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बन्दि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
॥ दोहा ॥
पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
यहाँ हनुमान चालीसा का पूरा हिंदी अर्थ दिया गया है:
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श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
(मैं अपने मन के दर्पण को गुरु के चरण कमलों की धूल से स्वच्छ करके, श्रीराम के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के दाता हैं।) -
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥
(मैं स्वयं को बुद्धिहीन जानकर, पवनपुत्र श्री हनुमान जी का स्मरण करता हूँ। कृपया मुझे बल, बुद्धि, और विद्या प्रदान करें और मेरे दुखों और दोषों को दूर करें।) -
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
(हे हनुमान, जो ज्ञान और गुणों के सागर हैं, आपकी जय हो। हे कपीश, आप तीनों लोकों में प्रसिद्ध हैं।) -
रामदूत अतुलित बलधामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
(हे राम के दूत, आप अतुलनीय बल के धाम हैं। आप अंजनी के पुत्र और पवन देवता के नाम से प्रसिद्ध हैं।) -
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
(हे महावीर, बजरंगबली, आप विकट पराक्रमी हैं। आप बुरी बुद्धि को नष्ट कर, अच्छी बुद्धि के साथी हैं।) -
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
(आपका शरीर स्वर्ण के समान उज्ज्वल है, आप सुंदर वस्त्र धारण किए हुए हैं। आपके कानों में कुण्डल और बाल घुंघराले हैं।) -
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
(आपके हाथ में वज्र और ध्वजा सुशोभित हैं और कंधे पर पवित्र जनेऊ शोभा देता है।) -
शंकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जगवंदन॥
(आप भगवान शिव के अवतार और केसरी के पुत्र हैं। आपके तेज और प्रताप को समस्त संसार वंदन करता है।) -
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
(आप विद्या, गुण और चतुराई में निपुण हैं। आप श्रीराम के कार्यों को करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं।) -
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
(आप श्रीराम के गुणों और चरित्र को सुनने में आनंद लेते हैं। श्रीराम, लक्ष्मण और सीता आपके हृदय में निवास करते हैं।) -
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
(आपने सूक्ष्म रूप धारण कर सीता माता को दिखाया और विशाल रूप धारण कर लंका को जलाया।) -
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचन्द्र के काज सँवारे॥
(आपने भीषण रूप धारण कर असुरों का संहार किया और श्रीराम के कार्यों को सफल बनाया।) -
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
(आप संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मणजी को पुनः जीवित कर दिया, जिससे श्रीराम ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।) -
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
(श्रीराम ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि आप मेरे लिए भरत के समान प्रिय भाई हैं।) -
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं॥
(श्रीराम ने कहा कि हजारों मुख आपके यश का गान करते हैं और आपको हृदय से लगा लिया।) -
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
(सनकादि, ब्रह्मा, शिव, नारद, सरस्वती और शेषनाग सभी आपका गुणगान करते हैं।) -
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
(यमराज, कुबेर, दिशाओं के देवता, कवि और विद्वान सभी आपकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकते।) -
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
(आपने सुग्रीव पर उपकार किया और उन्हें श्रीराम से मिलवाकर राजा का पद दिलवाया।) -
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।
लंकेंश्वर भए सब जग जाना॥
(आपके उपदेश को विभीषण ने माना और वे लंका के राजा बने, यह पूरा संसार जानता है।) -
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
(सूर्य जो हजार योजन दूर था, आपने उसे मीठा फल समझकर निगल लिया।) -
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥
(श्रीराम की अंगूठी को मुख में रखकर आपने समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं।) -
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
(जगत के सारे कठिन कार्य आपके अनुग्रह से सरल हो जाते हैं।) -
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
(आप श्रीराम के द्वार के रक्षक हैं, आपकी आज्ञा के बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकता।) -
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डरना॥
(जो आपकी शरण में आता है, उसे सभी सुख प्राप्त होते हैं और आपका रक्षक होने से उसे किसी प्रकार का भय नहीं होता।) -
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै॥
(आप अपने तेज को स्वयं नियंत्रित करते हैं, जिससे तीनों लोक आपकी हुंकार से काँप उठते हैं।) -
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
(जहाँ महावीर श्री हनुमान का नाम लिया जाता है, वहाँ भूत-पिशाच पास नहीं आ सकते।) -
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
(वीर हनुमानजी का निरंतर जप करने से सभी रोग और पीड़ा नष्ट हो जाती है।) -
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
(जो भी मन, वचन और कर्म से श्री हनुमान का ध्यान करता है, उसे वे सभी संकटों से मुक्त कर देते हैं।) -
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥
(तपस्वी श्रीराम जगत के स्वामी हैं और उनके सभी कार्य आपने सफलतापूर्वक किए।) -
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥
(जो भी व्यक्ति आपके समक्ष अपनी मनोकामना रखता है, उसे वह अनंत जीवन फल प्राप्त होता है।) -
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
(आपका पराक्रम चारों युगों में प्रसिद्ध है और आपका यश जगत में प्रकाशमान है।) -
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
(आप सज्जन संतों के रक्षक हैं, असुरों के संहारक और श्रीराम के प्रिय हैं।) -
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
(आपको माता जानकी ने अष्ट सिद्धि और नौ निधि का वरदान दिया ह) राम रसायन तुम्हरे पासा।सदा रहो रघुपति के दासा॥
(आपके पास श्रीराम के भक्ति रस का अमृत है। आप सदा श्रीराम के परम भक्त और सेवक बने रहें।)35. तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
(आपके भजन से श्रीराम की कृपा प्राप्त होती है, और जन्म-जन्मांतर के सारे दुख समाप्त हो जाते हैं।)36. अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
(अंत समय में श्रीराम के धाम को प्राप्त होता है, और अगले जन्म में भी हरिभक्त कहलाता है।)37. और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
(अन्य किसी देवता की उपासना करने की आवश्यकता नहीं, हनुमानजी की सेवा से ही सब सुख प्राप्त हो जाते हैं।)38. संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
(जो बलशाली हनुमानजी का स्मरण करता है, उसके सभी संकट दूर हो जाते हैं और पीड़ा मिट जाती है।)39. जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
(हे हनुमानजी, आपकी जय हो! गुरु के समान मुझ पर कृपा कीजिए।)40. जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महासुख होई॥
(जो सौ बार इस हनुमान चालीसा का पाठ करता है, वह सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है और महान सुख प्राप्त करता है।)41. जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
(जो इस हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसे सिद्धि प्राप्त होती है। इस पर गौरीपति शिवजी साक्षी हैं।)42. तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
(तुलसीदास सदा भगवान श्रीराम का दास है। हे हनुमानजी, कृपया मेरे हृदय में निवास करें।)दोहा:
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
(हे पवनपुत्र हनुमानजी, आप संकटों को हरने वाले और मंगलमूर्ति हैं। कृपया श्रीराम, लक्ष्मण और सीता सहित मेरे हृदय में निवास करें।)