शिव चालीसा
महत्व:
शिव चालीसा का पाठ करने से शिव भक्तों को शिवजी की कृपा प्राप्त होती है। लेकिन शिव चालीसा का पाठ तभी अधिक प्रभावी होता है जब इसका अर्थ और महत्व समझा जाए। जब हम शिव चालीसा के प्रत्येक श्लोक का अर्थ समझते हैं, तो यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं रह जाता बल्कि हमारे अंतर्मन में शांति और चेतना का संचार करता है। अर्थ को समझने से हमारी श्रद्धा और भी गहरी होती है और हम भगवान शिव के आशीर्वाद को और प्रभावी रूप से अनुभव कर सकते हैं।
शिव चालीसा का पाठ
दोहा:
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
अर्थ:
हे गणेशजी! आप माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र हैं। आप ही सब मंगलों के मूल हैं। मैं (अयोध्यादास) आपकी स्तुति कर रहा हूँ, कृपया मुझे निर्भयता का वरदान दें।
चौपाई 1:
जय गिरिजापति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
अर्थ:
हे गिरिजा के पति (भगवान शिव), आप दीनों पर दया करने वाले हैं। आप सदा ही संतों की रक्षा करते हैं।
चौपाई 2:
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अर्थ:
आपके माथे पर चन्द्रमा सुंदर प्रतीत होता है और आपके कानों में सर्पों के फन के कुंडल शोभायमान हैं।
चौपाई 3:
अंग गौर शिर गंग बहाए। मुण्डमाल तन छार लगाए॥
अर्थ:
आपका शरीर गोरा है और आपके सिर पर गंगा बह रही है। आपके गले में मुण्डमाला है और आपने शरीर पर भस्म लगाए हुए हैं।
चौपाई 4:
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
अर्थ:
आपने बाघ की खाल धारण की हुई है और आपकी यह छवि देखकर नाग भी मोहित हो जाते हैं।
चौपाई 5:
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
अर्थ:
माता मैना की पुत्री पार्वती आपकी अर्धांगिनी हैं, जो आपके बाएँ अंग में शोभायमान हैं।
चौपाई 6:
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
अर्थ:
आपके हाथ में त्रिशूल अत्यंत शोभायमान है और यह शत्रुओं का नाश करने वाला है।
चौपाई 7:
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
अर्थ:
नंदी और गणेशजी आपके साथ ऐसे शोभायमान होते हैं जैसे समुद्र के मध्य में कमल खिला हो।
चौपाई 8:
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
अर्थ:
कार्तिकेय, श्याम और गणों की इस छवि की महिमा का वर्णन कोई नहीं कर सकता।
चौपाई 9:
देवन जबही जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
अर्थ:
जब देवताओं ने आपकी प्रार्थना की, तब आपने उनके सभी दुखों का निवारण किया।
चौपाई 10:
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
अर्थ:
तारकासुर ने जब अत्यंत उत्पात मचाया, तब सभी देवताओं ने मिलकर आपकी आराधना की।
चौपाई 11:
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
अर्थ:
आपने तुरन्त षडानन (कार्तिकेय) को भेजा, जिन्होंने पलभर में तारकासुर का वध कर दिया।
चौपाई 12:
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
अर्थ:
आपने जलंधर असुर का वध किया और आपका यह यश समस्त संसार में फैल गया।
चौपाई 13:
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सभ पर करी कृपा धरि आई॥
अर्थ:
त्रिपुरासुर के साथ आपने भयंकर युद्ध किया और सभी पर कृपा करके त्रिपुरासुर का नाश किया।
चौपाई 14:
रिशि मुनि तप करत नित ध्यावा। भागीरथी शिव ध्यान लगावा॥
अर्थ:
ऋषि-मुनि सदा आपकी तपस्या और ध्यान करते हैं। राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए आपका ध्यान लगाया था।
चौपाई 15:
आपने गंगा धरि शीशा। पारब्रह्म ब्रह्मांड अदीशा॥
अर्थ:
आपने गंगा को अपने सिर पर धारण किया। आप ही परमब्रह्म और समस्त ब्रह्मांड के स्वामी हैं।
चौपाई 16:
सदाशिव अविनाशी वरदायक। सर्व विभूषित त्रिपुरारि जयजय॥
अर्थ:
आप सदाशिव हैं, अविनाशी हैं और वरदान देने वाले हैं। आप त्रिपुरासुर का नाश करने वाले हैं और सर्व विभूषित हैं।
चौपाई 17:
विश्वनाथ जगदीश महेश। करउ कृपा प्रभु तव उपदेश॥
अर्थ:
आप विश्वनाथ, जगत के ईश्वर और महेश्वर हैं। प्रभु, कृपया मुझ पर अपनी कृपा करें और मुझे उचित उपदेश दें।
चौपाई 18:
शिवाय चंद्रशेखर स्वामी। जन हित कर्ता अनंत भवानी॥
अर्थ:
हे शिव, आप चंद्रशेखर हैं और आप जन-हितकारी हैं। आप अनंत भवानी के पति हैं।
चौपाई 19:
नमो नमः शिवाय शंकरा। कृपा करउ नाथ मम संकट हर॥
अर्थ:
हे शिव शंकर, आपको बार-बार प्रणाम। कृपा करके मेरे सभी संकटों को हर लें।
चौपाई 20:
जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा विष्णु सदा तव ध्यारा॥
अर्थ:
जय हो शिव, जो ओंकार रूपी हैं। ब्रह्मा और विष्णु सदा आपके ध्यान में रहते हैं।
चौपाई 21:
आप अनादि सृष्टि के करता। आप ही ब्रह्मा, विष्णु महर्ता॥
अर्थ:
आप अनादि और सृष्टि के सृजनकर्ता हैं। आप ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश का रूप हैं।
चौपाई 22:
त्रिगुण स्वामी प्रभु दुखहारी। कृपा करउ कष्ट निवारि॥
अर्थ:
आप त्रिगुणों के स्वामी और सभी दुखों को हरने वाले हैं। कृपा करके मेरे कष्टों को निवारण करें।
चौपाई 23:
मनुज न जान सकै तव महिमा। जो जानत वह सदा शिव समा॥
अर्थ:
मनुष्य आपकी महिमा को पूरी तरह से नहीं जान सकता। जो आपकी महिमा को जान जाता है, वह शिव के समान हो जाता है।
चौपाई 24:
प्रणव मंत्र अति मीठा लागा। संकर सार भस्म विभागा॥
अर्थ:
प्रणव (ओम) मंत्र अत्यंत मधुर प्रतीत होता है। शिवजी ने भस्म को अपने शरीर पर विभाजित कर धारण किया है।
चौपाई 25:
महिमामय शंकर अघ टारक। योगी जन जो ध्यान निहारक॥
अर्थ:
शिवजी महिमामय हैं और पापों को हरने वाले हैं। योगीजन आपका ध्यान करते हैं और आपके दिव्य रूप का दर्शन करते हैं।
चौपाई 26:
जय शिव ओंकारा। प्रभु आप शरणागत धारा॥
अर्थ:
हे शिव, ओंकार स्वरूप, जय हो! आप अपने भक्तों को शरण में लेते हैं।
चौपाई 27:
मातु पार्वती संग विराजा। कृपा करउ प्रभु मन में साजा॥
अर्थ:
माता पार्वती के साथ आप विराजमान हैं। कृपा करके मेरे मन में स्थिरता और शुभ विचारों का संचार करें।
चौपाई 28:
नंदी शंकर वृषभ सवारी। हर हर महादेव जयकारी॥
अर्थ:
नंदी बैल आपका वाहन है, और सभी भक्त 'हर-हर महादेव' की जयकार करते हैं।
अंतिम दोहा:
कहत अयोध्यादास शिवाला। देहु अभय वर दीन दयाला॥
अर्थ:
अयोध्यादास यह शिव चालीसा का पाठ करता है और भगवान शिव से प्रार्थना करता है कि वे उसे निर्भय और दीनों पर दया करें।
निष्कर्ष:
शिव चालीसा का पाठ केवल शिवजी की महिमा का गुणगान ही नहीं करता, बल्कि यह हमें जीवन में आने वाली कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति भी देता है। जब हम चालीसा का पाठ करते हैं और उसके अर्थ को समझते हैं, तो हमें अध्यात्मिक शांति मिलती है और हमारी आस्था और दृढ़ होती है। शिव चालीसा को सही ढंग से समझकर और श्रद्धा से पाठ करने से शिवजी की कृपा प्राप्त होती है।